आज क्लास में टीचर ने पढ़ाया है –
हिन्दुओं का धर्मग्रन्थ गीता है ,
मुस्लिमों का कुरान है ,
और ईसाइयों का बाइबल .
ये मंदिर जाते हैं ,
वे मस्जिद ,
और वे गिरजा .
बच्चा जान गया है
कि सब अलग – अलग हैं .
वह गहरी सोच में है .
इतने दिनों से पता ही नहीं चला कि
क्या अलग है ?
वह गहरी सोच में है
उसे अब भी नहीं पता कि
क्या अलग है ?
हाथ – पैर , आँख – कान एक ही जैसे हैं ,
कल खेल में जब घुटने छिल गए थे
तो तीनों के अन्दर से
लाल खून ही छलका था .
बच्चा गहरी सोच में है .
टीचर अगला पाठ पढ़ा रही है –
ये भारत ,
ये पाकिस्तान .
ये चीन .
ये बर्मा .
बच्चे को नक़्शे रटने हैं .
बच्चा गहरी सोच में है –
आखिर ये टेढ़ी – मेढ़ी लकीरें बनाईं किसने ?
इंसान ने ?
पर टीचर तो कहती है कि
वे सब अलग – अलग हैं .
भगवान् ने ?
पर टीचर तो कहती है कि
वे भी अलग – अलग हैं .
बच्चा परेशान है .
टीचर उसे सवाल नहीं पूछने देती .
खुद ही सवाल बनाती है
खुद जवाब बताती है ,
बच्चे को बस रटना है .
बच्चा परेशान है ,
वह गहरी सोच में है .
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Kya baat hai bahut khub !
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शिक्षा बच्चों के कोमल मस्तिष्कों को किस तरह पूर्वाग्रह और विभाजन के मीठे जहर से भर देती है….इस भाव की सशक्त अभिव्यक्ति
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